गणपति आरती का अर्थ और रहस्य ( Ganapati Aaratee Ka Arth Aur Rahasy ) | गणेश पूजन में आरती का महत्व |

Introduction: पूजन और आरती का महत्व श्री गणेश जी

गणपति आरती का अर्थ और रहस्य (Ganapati Aaratee Ka Arth Aur Rahasy)
भगवान गणेश को हिंदू धर्म में प्रथम पूज्य देवता माना गया है। चाहे कोई भी शुभ काम हो, विवाह, गृह प्रवेश, या किसी नए कार्य की शुरुआत—सबके पहले श्री गणेश जी का स्मरण किया जाता है। उन्हें “विघ्नहर्ता“, “सिद्धिदाता“, “बुद्धिप्रदाता” और “मंगलकर्ता” कहा गया है।

गणपति आरती का अर्थ और रहस्य (Ganapati Aaratee Ka Arth Aur Rahasy) गणेश जी की आरती न केवल उनकी स्तुति ही, प्रतीक्षा है कि एक भक्त के लिए भावपूर्ण समर्पण की भी। जब हम गाते हैं तो आरती, हम अपने मन, वाणी और कर्म से गणेश जी की महिमा का स्तवन करते हैं। इस अंग्रेज़ी पोस्ट में हम श्री गणेश जी की प्रसिद्ध आरती “जय गणेश जय गणेश देवा” का शब्दार्थ और उसका गूढ़ भाव विस्तार से समझेंगे।

गणपति आरती का अर्थ और रहस्य (Ganapati Aaratee Ka Arth Aur Rahasy)

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा,
माता जाकी पार्वती, पिता महादेव।

एकदंत दयावंत, चार भुजाधारी,
माथे सिन्दूर सोहे, मूषक सवारी।

पान चढ़े फूल चढ़े, और चढ़े मेवा,
लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा।

अंधन को आँख देत, कोढ़िन को काया,
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया।

सूर श्याम शरण आए, सफल कीजै सेवा,
मात-पिता सहित दरस, दीजै मुझे देवा।

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गणपति आरती का अर्थ और रहस्य (Ganapati Aaratee Ka Arth Aur Rahasy) आरती के अर्थ और गूढ़ भाव

अब हम यह आरती की हर एक पंक्ति का भावार्थ और उसका गहरा आध्यात्मिक अर्थ समझते हैं।

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा, माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।

भावार्थ:

हे गणेश भगवान! आपकी बार-बार वंदना हो। आप माता पार्वती और शिवजी के पुत्र हैं।

गूढ़ संकेत:

यह पंक्ति हमारे मन में गणेश जी के प्रति श्रद्धा और उनके दिव्य मूल की स्मृति को स्थापित करती है।

एकदंत दयावंत, चार भुजाधारी, माथे सिन्दूर सोहे, मूषक सवारी।

भावार्थ:

आप एकदंती हैं (एक दांत वाले), बहुत दयालु हैं, चार भुजाओं वाले। आपके मस्तक पर सिन्दूर शोभा देता है, और आप मूषक (चूहे) पर सवारी करते हैं।

गूढ़ संकेत:

गणेश जी के हर प्रतीक (एकदंत, मूषक, सिन्दूर) में एक गहरा अध्यात्मिक रहस्य है—विनम्रता, विवेक और संतुलन।

पान चढ़े फूल चढ़े, और चढ़े मेवा, लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा।

भावार्थ:

आपको पान, फूल, मेवे और लड्डुओं का भोग अर्पित किया जाता है, संतजन आपकी सेवा करते हैं।

गूढार्थ:

यह पंक्ति भारी भाव, प्रसाद और शुद्ध सेवा के महत्व को प्रदर्शित करती है। संतों की सेवा और प्रसाद का आदान-प्रदान ईश xung या भगवान से जुड़ने का प्रायश कर्ता है।

Ganapati Aaratee Ka Arth Aur Rahasy

गणपति आरती का अर्थ और रहस्य (Ganapati Aaratee Ka Arth Aur Rahasy) अंधन को आँख देत, कोढ़िन को काया,

बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया।

भावार्थ:

आप अंधों को दृष्टि देते हैं, कोढ़ से पीड़ित को नया शरीर देते हैं, निःसंतान को संतान सुख देते हैं और गरीब को धन-समृद्धि प्रदान करते हैं।

गूढ़ संकेत:

गणेश जी कृपा के प्रतीक हैं। उनका आशीर्वाद दुखों का नाश करता है और जीवन में आशा का संचार करता है।

सूर श्याम शरण आए, सफल कीजै सेवा,

मात-पिता सहित दरस, दीजै मुझे देवा।

भावार्थ:

हे प्रभु! सूरदास और श्याम जैसे भक्त आपकी शरण में आए, कृपया मेरी सेवा को भी सफल कीजिए। मुझे अपने माता-पिता सहित दर्शन दीजिए।

गूढ़ संकेत:

यह पंक्ति आत्मसमर्पण और भक्ति की चरम अभिव्यक्ति है। भक्त अपने ईश्वर से केवल उनके दर्शन और कृपा की ही याचना करता है।

Ganapati Aaratee Ka Arth Aur Rahasy

गणेश जी की आरती का धार्मिक महत्व

गणेश जी की आरती कैसे करें? (पूजा विधि)

पहले गणपति मंत्र का उच्चारण करें –

Ganapati Aaratee Ka Arth Aur Rahasy

गणपति आरती का अर्थ और रहस्य (Ganapati Aaratee Ka Arth Aur Rahasy) लाभ गणेश आरती करने में

निष्कर्ष : गणपति आरती – एक साधना, एक समर्पण

गणपति आरती का अर्थ और रहस्य (Ganapati Aaratee Ka Arth Aur Rahasy) “जय गणेश जय गणेश देवा” आरती एक गीत नहीं, बल्कि हमारी आत्मा की पुकार हैं—जो गणेश जी की कृपा पाने की आकांक्षा में गूंजती हैं। जब हम यह आरती भावनाओं के साथ गाते हैं, तो हम उनके गुणों, करुणा, और दिव्यता का अनुभव करते हैं। गणेश जी की आरती हमें यह सिखाती है कि भक्ति में शक्ति है, श्रद्धा में समाधान है, और समर्पण में सच्चा सुख है।

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